धनुष कमान सी आँखों वाली
सेमी करली बालों वाली
मेरे घर के बगल की छत पे
उजले उजले कांधो वाली
तूँ हूर कोई बहिश्त की
तेरी कमर एक बालिश्त की।
होंठ तुम्हारे दहके दहके
रूप तुम्हारा झलके झलके
धरती अम्बर तक हिल जाये
चाल चलो जब लहके लहके
तुम हसरत मेरी ज़ीस्त की
तेरी कमर एक बालिश्त की।
सतसैया की अंगड़ाई सी
पद्माकर की अमराई सी
तुम विद्यापति की कीर्तलता
शृंगार छंद बरदाई सी
तुम नीरज गीत नशिश्त की
तेरी कमर एक बालिश्त की।
–सुधीर मौर्य