Sudheer Maurya & his Creation World…

मासिक पुरालेख: मई 2020

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गया से आई लुमिनी से आई
कुशीनारा के शाकमुनी से आई
कंथक के पीठ पे सवार हो के आई
ज्ञान की गाड़ी बयार हो के आई

अनोमा के तीर से निरंजना के नीर से
पीपल की छांव से पावा के ठाँव से
संकिसा के चैत्य विहार हो के आई
ज्ञान की गाड़ी बयार हो के आई

जेतवन के बाग से वैशाली के भाग से
उपालि के हाथ से सुनीति के साथ से
आलवी से गंगा की धार हो के आई
ज्ञान की गाड़ी बयार हो के आई

गौतमी से माया से विशाखा की छाया से
सुजाता की खीर से अंबाली के धीर से
कोलिय के गांव से सिंगार हो के आई
ज्ञान की गाड़ी बयार हो के आई।
–सुधीर मौर्य


दिन होके मेरे पुरवाई बहे
फूलों से महकती रात रहीं
जो कुछ वर्षों तुम साथ रहीं।

जब बनके रहे प्रेयस प्रेयसी
अपने वो स्वर्णिम वर्ष रहे
ओठों पे पुष्पों से खिलते
उद्देश्य रहें, निष्कर्ष रहें
मंदिर मे, कभी झील किनारे
तुम हाथों में देकर हाथ रहीं
जो कुछ वर्षों तुम साथ रहीं।

एक तेरी छवि ही देखूं मैं
चहुं ओर दिशा दिगंतर मे
सांसो की तुम्हारी महक बसे
बस मेरे मन के अंतर में
सबकुछ भुला दिया लेकिन
स्मरण बस तेरी बात रहीं
जो कुछ वर्षों तुम साथ रहीं।

पत्रों को अंतिम चुंबन कर
गंगा मे विसर्जित कर डाला
जो अब तक ह्रदय तुम्हारा था
यादों को समर्पित कर डाला
आंखो में तुम्हारे सपनों की
रात्रि – दिवस बारात रही
जो कुछ वर्षों तुम साथ रहीं।
–सुधीर मौर्य



दिन होके मेरे पुरवाई बहे
फूलों से महकती रात रहीं
जो कुछ वर्षों तुम साथ रहीं।

जब बनके रहे प्रेयस प्रेयसी
अपने वो स्वर्णिम वर्ष रहे
ओठों पे पुष्पों से खिलते
उद्देश्य रहें, निष्कर्ष रहें
मंदिर मे, कभी झील किनारे
तुम हाथों में देकर हाथ रहीं
जो कुछ वर्षों तुम साथ रहीं।

एक तेरी छवि ही देखूं मैं
चहुं ओर दिशा दिगंतर मे
सांसो की तुम्हारी महक बसे
बस मेरे मन के अंतर में
सबकुछ भुला दिया लेकिन
स्मरण बस तेरी बात रहीं
जो कुछ वर्षों तुम साथ रहीं।

पत्रों को अंतिम चुंबन कर
गंगा मे विसर्जित कर डाला
जो अब तक ह्रदय तुम्हारा था
यादों को समर्पित कर डाला
आंखो में तुम्हारे सपनों की
रात्रि – दिवस बारात रही
जो कुछ वर्षों तुम साथ रहीं।
–सुधीर मौर्य



घड़े में पानी लेकर रनिया नदी से जाने को हुई तभी वहां गाँव के प्रधान चेतराम अपने परिवार के साथ नहाने आ गये। रनिया कुछ देर उन सबको नदी में मस्ती से नहाते हुए देखते रही। जब वो घर पहुंची तो उसके पति अगिया ने उससे चिल्लाते हुए देर से आने की वजह पूछी। रनिया डरते हुए बोली ‘वहां प्रधान सपरिवार नहाने आ गए सो कुछ देर हो गई।’
‘बेशर्म औरत..’ अगिया दहाड़ते हुए बोला ‘गैर मर्द को नहाते देखती है रुक अभी तुझे मजा चखाता हूँ। अगिया ने अपने बड़े लड़के को बुलाकर उसे अपनी अम्मा को पीटने को कहा। पूरा माजरा समझने के बाद अम्मा की कोई गलती न देख लड़का वहां से चुपचाप चला गया।
अब अगिया ने गुस्से से उबलते हुए अपने दूसरे लड़के पारस को बुलाकर उसे रनिया को पीटने को कहा। पारस अपनी अम्मा पर टूट पड़ा और उसको रुई की तरह धुनने लगा। रनिया दर्द से .छटपटाती रही पर पारस उसे पीटता रहा। अगिया पत्नी को तड़पता देख अट्ठाहस करके हँसता रहा।
रनिया पूरी रात दर्द से तड़पती रही। सुबह अगिया ने पारस से कहा जाकर अम्मा के लिए डाक्टर से मरहम और दवा ले आये। पारस जब डाक्टर से दवा और मरहम लेकर आ रहा था तो रास्ते में गाँव की एक काकी ने उससे पूछा ‘पारस कहाँ से आ रहे हो।’
‘कुछ नहीं काकी अम्मा को तनिक चोट लग गई है सो डाक्टर से मरहम दवा ले आये हैं।’
‘कितनी सेवा करते हो तुम अपनी अम्मा की। भगवान तुम जैसा सुपुत्र सबको दे।’ काकी ने कहा और लाठी टेकते हुए आगे बढ़ गई।
–सुधीर मौर्य