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गया से आई लुमिनी से आई
कुशीनारा के शाकमुनी से आई
कंथक के पीठ पे सवार हो के आई
ज्ञान की गाड़ी बयार हो के आई

अनोमा के तीर से निरंजना के नीर से
पीपल की छांव से पावा के ठाँव से
संकिसा के चैत्य विहार हो के आई
ज्ञान की गाड़ी बयार हो के आई

जेतवन के बाग से वैशाली के भाग से
उपालि के हाथ से सुनीति के साथ से
आलवी से गंगा की धार हो के आई
ज्ञान की गाड़ी बयार हो के आई

गौतमी से माया से विशाखा की छाया से
सुजाता की खीर से अंबाली के धीर से
कोलिय के गांव से सिंगार हो के आई
ज्ञान की गाड़ी बयार हो के आई।
–सुधीर मौर्य