दिन भर ढेरो काम करके थका हुआ रमजानी शाही हरम के शाही कमरे में शाही बिस्तर शंहशाह के लिए लगा रहा था।
बिस्तर लगने के बाद थके हुए रमजानी को न जाने क्या सूझा वो शाही बिस्तर पर कुछ पलो के लिए ये सोच कर लेट गया कि किसी के आने से पहले उठ जायेगा। वाह क्या नरम मुलायम बिस्तर था, रमजानी की कल्पनाओ से परे।
कुछ तो थकन कुछ तो शाही बिस्तर की नरमाहट का असर रमजानी की आंख लग गई।
धार्मिक तकरीरे सुनने के बाद शंहशाह अपना कमरे मे निद्रा के लिए आया। अपने शाही बिस्तर पर रमजानी को सोता देख वो गुस्से से आगबबूला हो कर दहाड़ उठा। रमजानी जग कर डर से थर थर कांपते हुए शंहशाह के कदमो पर गिर कर रहम की भीख मांगने लगा किन्तु निष्ठुर शंहशाह ने पहरेदारो को बुला कर रमजानी को महल के बुर्ज से जमीन पर फेंक कर मारने का हुक्म दे दिया। रमजानी की अंतिम चीख कुछ पलो मे ही कंठ से निकलकर शाही बिस्तर पर लेटे शंहशाह के कानो मे घुसने से पहले अनन्त मे विलीन हो गई।
रमजानी शंहशाह अकबर का गुलाम था।
–सुधीर मौर्य
हम्मीर हठ Hammir Hath
शीघ्र प्रकाश्य ऐतहासिक उपन्यास #हम्मीर_हठ से
‘मरहठ्ठी बेगम तुम क्या खुशनसीबी और वक़्त की फेर की बात कर रही हो जबकि सच तो ये है कि आज सारी ज़मीन पर कहीं भी कोई भी तलवारे अलाई का मुकाबला करने की हिम्मत और हिक़ामत नहीं कर सकता।’
कह कर सुल्तान अलाउद्दीन खिलज़ी हंस पड़ा। दम्भी और वहशी हंसी। देवी छिताई कुछ क्षण उसकी वाहिशयानी हंसी देखती रही और पैतरा बदल के वही ज़मीन पर दोनों घुटने मोड़ के उन पर अपने स्थूल नितम्बो के सहारे बैठते हुए किसी बिफरी हुई शेरनी की भांति दहाड़ते हुए बोली ‘हाँ सुलतान ये तुम्हारी और तुम्हारी तलवारे अलाई दोनों की खुशकिस्मती है और वक़्त का फेर है कि तुम्हारा सामना चन्द्रगुप्त मौर्य से नहीं हुआ। जब उनके सामने वास्तविक सिकंदर न टिक सका तो खुद को सिकंदर सानी नाम से तसल्ली देने वाले तुम कैसे टिक पाते।’
‘अच्छा हुआ सुल्ताने हिन्द तुम्हारा सामना समय की चाल के सौभाग्य से ‘समुद्रगुप्त और १६ वर्ष की आयु में हुणों को खदेड़ने वाले स्कंदगुप्त से नहीं हुआ। सच तुम्हारी किस्मत बाबुलंद है जो विक्रमादित्य, हर्षवर्धन और पुलिकेशन दवतीय से तुम्हारा सामना नहीं हुआ नहीं तो तुम्हारी तलवारे अलाई को चूर्ण में परिवर्तित कर दिया गया होता। तुम्हारी किस्मत का सच में रोशन हे मेरे पतिदेव जो तुम्हारे सामने बाप्पा रावल और नागभट्ट नहीं आये नहीं तो….।’
–सुधीर मौर्य
दरिया, कश्ती, लहरे, साहिल
तेरा जोबन झिलमिल झिलमिल
होंठ तुम्हारे अमृत प्याला
आंखे मकतल की कातिल
आजा मस्जिद के पिछवाडे
बैठे दोनो हम हिलमिल
मेरे घर के आंगन में तूं
जैसे लैला और महिमिल
उजले उजले काधें चूमूं
या पॉव का ऐडी का मै तिल
मिलकर दुनिया महका दे
एक तेरा एक मेरा दिल।
–सुधीर मौर्य